दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट [पंजीकरण क्रमांक- ई/३६१७/साबरकांठा (गुज)],कार्यालय- आर्यवन विकास क्षेत्र,रोजड,पत्रालय-सागपुर,जिला- साबरकांठा,गुजरात,पिन- ३८३३०७] अपने पूर्वजों ऋषि-मुनियों के द्वारा अनुपालित परम्पराओं की अनमोल थाती को सुरक्षित रखने के लिए सदैव प्रयासशील है । ट्रस्ट संविधान(Trust Deed)(न्यासियों के अधिकार क्रमांक- ठ) के अनुसार दिनांक ०१-०२-२०१७ को ट्रस्ट की प्रस्ताव सभा-२० में क्रमांक -४ में इसी दिशा में एक प्रस्ताव पारित किया गया है । आर्य समाज में योग-विद्या में आदर्श माने जाने वाले पूज्य स्वामी सत्यपति जी परिव्राजक की यह अभिलाषा रही है कि समाज में ऐसे सत्यवादी परोपकारी दार्शनिक आदर्श योगियों का निर्माण किया जाये, जिनका मुख्य उद्देश्य निष्ठापूर्वक ईश्वर, जीव, प्रकृति व भौतिक पदार्थों का वैदिक ज्ञान-विज्ञान आदान-प्रदान करना हो । यह सब कार्य समान लक्ष्य वाले व्यक्तियों के धार्मिक संगठन द्वारा ही सम्भव है । दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट ने अपने उपरोक्त प्रस्ताव द्वारा ऐसे संगठन-निर्माण का निश्चय किया है ।
पूज्य श्री स्वामी सत्यपति जी परिव्राजक के आशीर्वाद पूर्वक चैत्र शु.०५ वि. २०७४ तदनुसार ०१ अप्रैल २०१७, शनिवार को न्यास के कार्यालय में प्रवंधक न्यासी श्री स्वामी विवेकानन्द जी परिव्राजक के अध्यक्षता में न्यासियों तथा अनेक आमंत्रित महानुभावों के उपस्थिति में सर्वसम्मति पूर्वक परिषद का निर्माण किया गया ।
परिषद् का नाम :- “वैदिक परिषद्”
शाखा :- १- विद्या परिषद्
२- प्रबन्ध परिषद्
३- सहयोग परिषद्
सदस्यता :- व्यक्ति की योग्यता के आधार पर परिषद् की श्रेणी में प्रवेश दिया जाएगा । श्रेणी के अनुसार ही सभाओं में भाग लेने व सम्मति देने की स्थिति होगी । प्रत्येक श्रेणी के सदस्यों का चयन अंतरंग सभा द्वारा होगा ।
परिषदध्यक्ष :-दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट के प्रबन्धक न्यासी ।
संयोजक :- तीनों परिषद् के पृथक्-पृथक् संयोजक का चयन ट्रस्ट सभा करेगी ।
अन्तरंग सभा :- न्यासीगण तथा कुछ योग्य चयनित व्यक्ति सम्मिलित होंगे ।
विशेष सभा :- न्यासीगण तथा सभी परिषद् के पदाधिकारी सम्मिलित होंगे ।
साधारण सभा :- सभी सदस्य सम्मिलित होंगे । (वर्ष में कम से कम एक बार)
· वैदिक योगविद्या के द्वारा ईश्वर साक्षात्कार करना तथा करवाना ।
· वैदिक दर्शन व योग विद्या के स्नातकों,आचार्यों,साधकों,प्रचारकों का निर्माण करना ।
· वैराग्यवान् योगाभ्यासी विद्वान् ब्रह्मचारियों व संन्यासियों हेतु साधना की व्यवस्था व अन्य सहयोग करना ।
· स्नातकों तथा साधकों के लिए निवास तथा वृद्धावस्था में उनकी सेवा व सुरक्षा की व्यवस्था करना ।
· शिविर,गोष्ठी, सम्मेलन आदि विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से वैदिक दर्शन,योग विद्या का प्रचार-प्रसार करना ।
· वैदिक योगविद्या पर क्रियात्मक अनुसंधान करना ।
· विभिन्न स्थानों में साधनाश्रम,प्रचार केन्द्र,शिविर केन्द्र,गुरुकुल,योग महाविद्यालय आदि की स्थापना तथा संचालन करना ।
· प्रांतीय,मंडलीय से लेकर ग्राम स्तरीय प्रचार समितियों के माध्यम से विशुद्ध वैदिक परिवारों का निर्माण करना ।
· कार्यरत् समाज,संगठन,समिति,संस्थानों में योगविद्या की संवृद्धि व सुरक्षा देना । तथा संबद्धता (Affiliation) देना ।
· साधकों,स्नातकों,प्रचारकों के लिए कार्यक्षेत्र उपलब्ध करवाना ।
· धार्मिक व्यक्तियों के साथ सभी प्रकार से मिलकर संगठित रहना ।
· वैदिक सिद्धान्तों के अनुकूल साहित्य की रचना,प्रकाशन तथा वितरण करना ।
· सभी को योग्यतानुसार सेवा के अवसर उपलब्ध करवाना । आदि आदि … ।
१. वैदिक योगविद्या के द्वारा ईश्वर-साक्षात्कार करने और करवाने वाले योगाभ्यासी साधकों तथा सभी सदस्यों अर्थात् जिज्ञासुओं को परस्पर एक दूसरे को ज्ञान विज्ञान संबंधी सहायता प्राप्त होती रहेगी ।
२. परिषद् योग्यतानुसार प्रत्येक को कार्यक्षेत्र तथा सेवा का अवसर भी उपलब्ध करवाएगी ।
३. भविष्य में साधन उपलब्ध होने पर परिषद् विद्यापरिषद् के चयनित अधिकारियों की ५० वर्ष के उपरान्त अवस्था होने पर उनके लिये निवास,वस्त्र,भोजन,सुरक्षा,सहायता व्यवस्था का प्रयत्न करेगी ।
४. परिषद् विद्यापरिषद् के अधिकारियों की वृद्धावस्था या दीर्घ चिकित्सादि में नियमित सेवक या सेवा की व्यवस्था का प्रयास करेगी ।
५. परिषद् विद्यापरिषद् के सभी सदस्यों को आरंभ से ही आकस्मिक या न्यूनकालीन रुग्णता में यथायोग्यसहयोग उपलब्ध करवायेगी ।
६. परिषद् सभी सदस्य व अधिकारियों को विशेष धार्मिक प्रचारादि कार्यक्रम में यथाशक्ति सहयोग करेगी ।
७. परिषद् का कोई भी सदस्य कहीं भी परिषद् संयोजक की अनुमति से संस्था के नाम से कार्यक्रम,शिविर,सम्मेलन,गोष्ठियां आदि कर सकेगा।
८. परिषद् का कोई भी सदस्य वेद-प्रचार समिति के माध्यम से वैदिक परिवार का निर्माण तथा वैदिक सिद्धान्त व योग विद्या का प्रचार कर सकेगा ।
९. परिषद् का कोई भी सदस्य “प्रांतीय-समिति अध्यक्ष” की अनुमति से वेद-प्रचार समिति की शाखा का संचालन कर सकेगा ।
१०. परिषद् का कोई भी अधिकारी कहीं भी ट्रस्ट की अनुमतिपूर्वक स्वतन्त्र रूप में नूतन प्रकल्प अर्थात् महाविद्यालय,गुरुकुल,प्रचार केन्द्र, शिविर केन्द्र आदि का निर्माण व संचालन कर सकता है ।
११. पर्यावरण शुद्धि हेतु अग्निहोत्र के लिए उत्तम हवन सामग्री,समिधा,गाय का घी आदि का तथा शुद्ध सात्विक जैविक अन्न तथा भोज्य पदार्थ आदि उपलब्ध होगा ।
१. सदस्य के लिए सामान्य योग्यता-
क. वैदिक मन्तव्य व सिद्धान्त (जो वेद तथा वेदानुकूल आर्ष वाङ्मय पर आधारित महर्षि दयानन्द के ग्रंथों में वर्णित) को स्वीकार करने वाला ।
ख. प्रतिदिन वैदिक उपासना करने वाला ।
ग. मानसिक,वाचनिक,शारीरिक व आर्थिक रूप में दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट का शुभचिन्तक हो । (सदस्यता शुल्क के अतिरिक्त आर्थिक सहयोग देना स्वैच्छित है ।)
घ. १०००/- (एक हजार) रुपयाव इस से अधिक राशि सदस्यता शुल्क रूप में एक बार प्रदान करना ।
ङ. शाकाहारी होना तथा बीडी, सिगरेट, अफीम, शराब आदि मादक द्रव्यों का सेवन न करने वाला ।
च. जुआ,अफीम,मद्यमांसादि का व्यवसाय न करने वाला ।
२. सहयोग परिषद् की सदस्यता के लिए दर्शन योग महाविद्यालय में अथवा ट्रस्ट के किसी प्रकल्प में अथवा कोई विशेष कार्यक्रम आयोजन अथवा आवेदन दिनांक से पूर्व ३ वर्ष में कम से कम कुल १,००,०००/- (एक लाख) रुपया इस संस्थान को दान के रूप में दिये हो ।
३. प्रबन्ध परिषद्की सदस्यता के लिए दर्शन योग महाविद्यालय अथवा ट्रस्ट के किसी प्रकल्प में अथवा किसी विशेष कार्यक्रम आयोजन में व्यवस्था सम्बन्धित कार्य में विशेष बौद्धिक/ शारीरिक रूप से कम से कम तीन वर्षों से जुड़े हुए हो ।
अथवा
आर्यवन परिसर में कम से कम ५ बार योग शिविर में भाग लिया हो ।
अथवा
दर्शन योग महाविद्यालय के सघन साधना शिविर में कम से कम १ माह शिविरार्थी रूप में रहे हों ।
४. विद्या परिषद्की सदस्यता के लिए ।
(क) दर्शन योग महाविद्यालय में अथवा इस की कोई शाखा में कम से कम १ वर्ष का समय अध्ययन हेतु दिया हो ।
अथवा
वैदिक (आर्य समाज) विचार रखने वाले अन्य गुरुकुल में २ वर्ष अध्ययन के लिए रहे हों ।
अथवा
ब्रह्मचारी/ संन्यासी ३ वर्ष तक तथा वानप्रस्थ/ गृहस्थी ५ वर्ष तक दर्शनयोग सहयोग परिषद् / प्रबन्ध परिषद् में सदस्य आदि पद में रहा हो ।
(ख) किसी भी गुरुमुख से योगदर्शन सहित कुल २ दर्शन पढ़ा हो ।
अथवा
दर्शन योग महाविद्यालय में अथवा दर्शन योग महाविद्यालय की शिष्य परम्परा से कम से कम प्रथमावृत्ति अध्ययन किया हो ।
(ग) प्रायः प्रतिदिन दोनों समय नियमित वैदिक ईश्वर उपासना करता हो ।
(घ) यम-नियम का पालन करने में तत्पर रहता हो (योगाभ्यासादि साधना अभ्यास में प्रवर्त्तमान हो )।
५. साधारण सदस्यों को योग्यता अर्थात् कार्यकाल,अवस्था, सेवा आदि के आधार पर सम्मान,अधिकार आदि में परिवर्तन / परिवर्धन किया जा सकेगा ।
६. एक व्यक्ति एकाधिक परिषद् में सदस्य बन सकता है परंतु एक-एक कार्यक्षेत्र में अर्थात प्रकल्प आदि में एक ही पद का अधिकारी बन सकेगा ।
७. निर्धारित योग्यता के अंतर्गत आने वाले संस्थान,ट्रस्ट,समिति आदि के सुयोग्य प्रतिनिधि भी परिषद् के सदस्य आदि बन सकते हैं ।
क. स्व-परिषदीय सभाओं का आयोजन करना ।
ख. स्व-परिषद् का उप-संयोजक आदि कार्यकर्त्ता का चयन करना ।
ग. गूढ वैदिक योगविद्या का अनुसंधानात्मक ज्ञान,योगाभ्यास से उपलब्ध अनुभूतियां तथा विवेक-वैराग्य की अनुभवात्मक प्रेरणाओं का आदान-प्रदान करने हेतु विशेष कार्यक्रम करना ।
घ. वैदिक विद्वान्,उपदेशक,साधकों का निर्माण करना । उनमें से रुचि व योग्यतानुसार विदेशी भाषाओं का प्रशिक्षण देकर प्रचार के अवसर उपलब्ध कराना ।
ङ. किसी एक व अनेक वैदिक विचारों को लेकर गोष्ठी,चर्चा,अनुसन्धान आदि करना ।
च. दीर्घ कालीन योग साधना शिविरों का आयोजन करना ।
छ. वैदिक प्रवक्ता,भजनोपदेशकों,उपदेशकों आदि हेतु सिद्धान्त प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन करना । उन को प्रवचन तथा शंका समाधान की कला तथा विज्ञान को प्रदान करना ।
ज. वैदिक ग्रन्थों पर निर्णयात्मक शोध करना ।
झ. वैदिक ग्रंथ रचना में आवश्यक भूमिका निभाना । विद्वान गोष्ठी आयोजित कर के वैदिक आध्यात्मिक साहित्यों की समीक्षा करना । उन में आवश्यक संशोधन कराने का प्रयास करना।
ञ. नूतन प्रकल्प बनाने में सहयोग करना ।
ट. किसी भी प्रकल्प को विद्वान् उपदेशकों आदि की सेवाओं का आदान-प्रदान करना । विद्या परिषद् के सदस्यों के लिए नाम प्रस्तावित करना ।
क. स्व परिषदीय सभाओं का आयोजन करना ।
ख. स्व-परिषद् का उप-संयोजक आदि कार्यकर्त्ता का चयन ।
ग. दूसरे ट्रस्ट व संस्थान को संबद्धता (affiliation)देने के लिए नाम प्रस्तावित करना ।
घ. नूतन प्रकल्प के निर्माण में सहयोग देना ।
ङ. पंचायत स्तरीय, जिला स्तरीय, राज्य स्तरीय अनेक प्रकार से प्रचार समितियों का निर्माण करते हुए “वैदिक परिवारों” का गठन करना ।
च. प्रबन्ध परिषद् के सदस्यों, प्रचारक प्रहरी,प्रचारक आदि के लिए उपयुक्त महानुभावों का परिषद् में जुड़ने के लिए प्रेरित करना ।
छ. साधकों,स्नातकों,प्रचारकों,उपदेशकों आदि के लिए कार्यक्षेत्र उपलब्ध करवाना ।
ज. विद्यापरिषद् के अधिकारियों के लिए निवास, भोजन आदि व्यवस्था करना । (संबन्धित प्रकल्प अध्यक्ष के निर्देशन में )
झ. विशेष-विद्वान-योगाभ्यासियों का किसी विशेष अवसर पर सार्वजनिक अभिनंदन व सम्मान समारोहों का आयोजन करना ।
ञ. शिविर, सम्मेलन आदि का आयोजन करवाना ।
ट. वेद-प्रचार समितियों की रक्षा व संवृद्धि आदि करना ।
ठ. गृह त्यागी विद्वानों के माता-पिता परिजनों को विशेष कार्यक्रम में सम्मानित करना । आवश्यकता के अनुसार उन की परिचर्या तथा सुश्रुषा का प्रबंध करना ।
ड. धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक संस्थाओं के बृहद विशाल आयोजन के अवसर पर निकट स्थान पर यज्ञ,ध्यान,वेद उपदेश तथा शंका समाधान कार्यक्रम का आयोजन करना तथा इन विषयों की प्रदर्शनियां लगाना ।
ढ. पुस्तक प्रदर्शनी तथा पुस्तक मेलों का आयोजन करना अथवा राष्ट्रिय -अंताराष्ट्रिय पुस्तक मेले में स्टाल लगाकर वैदिक तथा आध्यात्मिक साहित्य का प्रचार-प्रसार करना ।
ण. प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित तथा निर्धनों हेतु बचाव तथा सहयोग करना । आदि......
क. स्व परिषदीय सभाओं का आयोजन करना । उप-संयोजक आदि कार्यकर्त्ता का चयन करना।
ख. प्रत्येक प्रकल्प,समिति, प्रचार केन्द्र की आर्थिक स्थितियों का समायोजन करना ।
ग. विद्यापरिषद् के अधिकारियों के लिए निवास,भोजन आदि हेतु उत्तम व्यवस्था में आर्थिक व अन्य सहयोग करना।
घ. नूतन प्रकल्प के निर्माण में आर्थिक व अन्य सहयोग देना ।
ङ. परिषद् के कार्य कलापों हेतु निधियों की स्थापना तथा परिवर्धन करना । यथा- स्नातक-सुरक्षा निधि,गुरुकुल- संचालन निधि,गौवंश संवर्धन निधि,साहित्य प्रचार निधि, सम्मान व अभिनन्दन निधि, यज्ञ-प्रसार निधि आदि आदि ।
च. विद्यापरिषद् के सभी अधिकारियों के लिए स्वास्थ्य बीमा (health Insurance) जैसे की व्यवस्था करना । (संबन्धित प्रकल्प अध्यक्ष की सहमति से)
छ. पर्यावरण शुद्धि हेतु अग्निहोत्र के लिए उत्तम हवन सामग्री,समिधा,गाय का घी आदि का निर्माण तथा वितरण करवाना ।
ज. शुद्ध सात्विक जैविक अन्न तथा भोज्य पदार्थ आदि का निर्माण तथा वितरण करवाना ।
झ. पुस्तक,सीडी,आदि का निर्माण व वितरण करना ।
ञ. औषधीय वनस्पति तथा वृक्ष,उद्यान,वन आदि का निर्माण करना । आदि .....
परिषद से पृथक् करने के लिए नियम :-
(क) परिषद् द्वारा निर्धारित योग्यता से विरुद्ध आचरण /उल्लंघन करने से ।
(ख) न्यास/परिषद् के विरुद्ध अथवा हानिकारक गतिविधियों में संलग्न होने से ।
(ग) मानसिक विकृति घोषित होने पर पदमुक्त करते हुए यथायोग्य चिकित्सा आदि की व्यवस्था की जाएगी ।
(घ) स्व-पद से त्याग पत्र देने से ।
(ङ) न्यायालय द्वारा आर्थिक/चारित्रिक/हत्या संबन्धित अपराधी घोषित होने से ।
वि.द्र. :- १ -आवश्यकतानुसार नियमों व व्यवस्थाओं में संशोधन व संवर्धन संभव है ।
२- प्रति सदस्य स्वपरिषद् के कार्य के अंतर्गत सभी प्रकार कार्य को स्वतन्त्र भाव से संपादित कर सकते है । परंतु एकरूपता तथा संगठन रूप देने के लिए विशेष कार्यों में अध्यक्ष श्री /स्व परिषद् के संयोजक से पूर्व अनुमति व अनुमोदन लेना आवश्यक रहता है ।
विभाग- क |
॥ प्रस्तावित दर्शनयोग धाम॥.
गुरुकुल व अनुसंधान विभाग
-
प्राचीन वैदिक गुरुकुल :-वैदिक संस्कृति की सुरक्षा व संवर्धन के निमित्त त्यागी, तपस्वी, वैराग्यवान, विद्वान, संन्यासी, ब्रह्मचारियों का निर्माण करना । कुल सात विभाग रहेगा।
1) वेदविभाग,2) साहित्यविभाग, 3) व्याकरणविभाग, 4) ज्योतिषविभाग, 5) आयुर्वेदविभाग, 6) दर्शनविभाग, 7) उपदेशकविभाग।
भव्य सामूहिक आकर्षण द्वार सहित प्रत्येक विभाग में 8 ब्रह्मचारी आवास, 2 आचार्य आवास, 1 अध्यापन व साधना कक्ष (Meditation with Class Room), एक-एक विभागीय वाचनालय (Reading Library)तथा सामूहिक व्यायामशाला रहेगा।
विभाग- ख |
विश्वविद्यालय/विद्यापीठ व अनुसन्धान केंद्र- दर्शन योग महाविद्यालय, आर्यवन, रोजड़, महात्मा प्रभु आश्रित कुटिया, रोहतक, (हरियाणा), प्रस्तावित दर्शन योग कन्या महाविद्यालय, पंचकुला (हरियाणा), दर्शन योग महाविद्यालय कटक, श्रुतिन्यास ओड़िसा आदि की व्यवस्था, प्रबन्ध तथा विशुद्ध वैदिक योग के क्षेत्र में विशिष्ट अनुसन्धान तथा रिकॉर्ड रूम, बैठक प्रकोष्ठ आदि का निर्माण किया जाएगा।
संन्यासी/विरक्त आश्रम
- निदेशक कक्ष:- दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट के प्रबन्धक न्यासी तथा समस्त प्रक्ल्प के निदेशक (पूज्य स्वामी विवेकानंद जी परिव्राजक) के लिए सर्वसाधन युक्त प्रकोष्ठ,अध्ययन कक्ष,बैठक गृह आदि सहित आवास व्यवस्था।
- सन्यासीआश्रम तथा स्नातक साधना कुटीर :-पूज्य स्वामी सत्यपति जी की शिष्य परंपरा से शिक्षा प्राप्त स्नातकों तथा अन्य योगाभ्यासी विद्वान,संन्यासी,साधकों के लिए स्वतंत्र स्व-अनुकूल साधन व्यवस्था युक्त लगभग 30 निवास गृह ।
- ध्यान कक्ष:- व्यक्तिगत ध्यान उपासना के लिए वेशेष पाँच वांस और गोमय से निर्मितध्यान कक्ष का निर्माण करना ।
- मौन साधना कुटिया:-कुछ दिन के लिए अदृश्य,काष्ठ मौन साधना के लिएसभी साधन युक्त, वातानुकूल,ध्वनि प्रतिरोधक आवासीय प्रकोष्ठ।
- वीतराग पुस्तकालय:- सम्पूर्ण वैदिक वांगमय,लुप्तप्राय प्राचीन प्रकाशित ग्रंथ,प्राचीन अनुसंधान ग्रंथ तथाविद्वानों की वैदिक ग्रन्थों का संग्रह तथा स्वाध्याय हेतु व्यवस्था करना।
- विभागीय सेवक प्रकोष्ठ:- साधोकों के सेवक हेतु 2 प्रकोष्ठ।
विभाग- ग |
साधना-स्वाध्याय आश्रम (वानप्रस्थ)
- वानप्रस्थ साधक आश्रम:- स्वाध्याय- साधना- सेवा में संलग्न रहते हुए तथा तपस्या पूर्वक जीवन यापन करने वाले 50से 60वानप्रस्थी व साधकों के लिए उत्तम साधन युक्त 40-50कक्ष सहित विशिष्ट वानप्रस्थ साधक आश्रम का निर्माण करना ।
- पितृ तर्पण आश्रम:- योग्य संन्यासी, आचार्य, ब्रह्मचारियों के माता-पिता की सेवा, सुश्रुषा हेतु अनुकूल वातावरण युक्त आवास व्यवस्था।
- ऋषिकाकूलम्:-स्वाध्याय- साधना- सेवा हेतु अवसर तथा प्रचारिकानिर्माण हेतु40 उम्र से अधिक माताओं बहनों के लिए व्यवस्था करना ।
- साधक अतिथि कुटिया:-स्वाध्याय- साधना- सेवा हेतु आगंतुक महानुभावों तथा प्रतिष्ठित महानुभावों के आवास हेतु व्यवस्था।
- बैठक गृह (कम्यूनिटी हाल):-वानप्रस्थ,साधक आदि चर्चा विमर्श आदि हेतु प्रोजेक्टर,दूरदर्शन सहित व्यवस्था
- प्राथमिक चिकित्सा व उपचारिका प्रकोष्ठ:- दर्शनयोग धाम के सभी निवासी के लिए चिकित्सा, 24x7 घंटे सेवा की व्यवस्था ।
- व्यायाम शाला (ओपेन आवरण युक्त):- साधक तथा अतिथि हेतु लगभग 40 कुटिया ।
विभाग- घ |
विभागीय सेवक प्रकोष्ठ:- उपचारिका/ सेवक आवास के लिए लगभग 5-6 कुटिया ।
शिविर केंद्र
- शिविर तथा प्रशिक्षण आदर्श सभागृह :- वर्तमान में200शिविरार्थियों का आवासीय क्रियात्मक योग प्रशिक्षण शिविर, यज्ञप्रशिक्षण शिविर, चरित्र निर्माणशिविर, आदर्श गृहस्थ निर्माण शिविर, व्यक्तित्व विकासशिविर आदि हेतु वातानुकूल आदर्श सभागृह आदि का निर्माण करना ।
- शिविरार्थी आवासीय भवन (पुरुष) :-उक्त शिविर के पुरुष शिविरार्थी तथा अध्यापक के लिए आवश्यक आवास गृह।
- शिविरार्थी आवासीय भवन (महिला) :- उक्त शिविर के महिला शिविरार्थी तथा अध्यापक के लिए आवश्यक आवास गृह।
विभाग- च |
यज्ञ प्रचार प्रसार
- यज्ञशाला :- वेद तथा वैदिक संस्कृति का आधारभव्य आकर्षण यज्ञशाला निर्माण।
- यज्ञ प्रशिक्षण केंद्र :- क्रियात्मक रूप से यज्ञ का प्रशिक्षण देते हुए घर घर में यज्ञ का प्रचार करना ।
- यज्ञ प्रदर्शनी गृह:- यज्ञ के विभिन्न लाभ को तथा विभिन्न यज्ञ साधनों के प्रदर्शनी।
- यज्ञ चिकित्सालय :- आधुनिक साधनों से युक्त पृथक-पृथक रोग के निवारण के लिए यज्ञ चिकित्सा हे तू यवस्था।
विभाग- छ |
संस्कार केंद्र :- वैदिक संस्कारों के संपदान हेतु व्यवस्था
- पाकशाला :- भोजन पकाने के साधन सुविधा के साथ पाकशाला,स्टोरो,पाचक आवासादि सहित।
- भोजनालय :- सभी अवस्था के लोगों सुविधा अनुकूल व्यवस्था।
विभाग- ज |
प्रशासन विभाग
- कार्यालय :- ट्रस्ट के सभी प्रचार प्रसार व्यवस्था,हिसाव,जन-संपर्क आदि कार्य संपादित हेतु वातायान युक्त संगणक आदि साधन युक्त भिन्न भिन्न विभाग के लिए पार्टिसन युक्त कार्यालय का निर्माण ।
- स्वागत कक्ष :- संस्थान के गतिविधि के पदर्शिन आदि सुविधा के साथ वातानुकूल एक प्राकोष्ठ।
- पुस्तक प्रकाशन :- वैदिक वाङ्ग्मय के समस्त ग्रन्थों के प्रकाशन हेतु डीटीपी,डिजाइनादि कार्य।
- मीडिया सेंटर:- वीडियो सुटिंग स्टुडियो, एडिटिंग तथा सोसिल मीडिया से प्रचार की व्यवस्था करना।
- Pजलाशय (पानी टाँकी),Pसेक्युर्टी प्रकोष्ठ ,Pजेनेर्टर तथा विद्युत नियत्रक प्रकोष्ठ Pसार्वजनिक शौचालय तथा स्नानागारPकर्मचारी आवास
विभाग ‘झ’:-गौ-कृषि विभाग
- गौशाला :- गौसेवक, गौखाद्य भंडार, गौ उत्पाद भंडार आदि के साथ साथ लग. 100 गौमाता की पालन व्यवस्था
- कृषि विभाग :- जौविक कृषि व्यवस्था
- सेवा प्रकल्प :- गृह उद्यग निर्माण के लिए प्रकोष्ठ
विभाग ‘ञ’:-वाणिज्यिक विभाग
- वैदिक वस्तु भंडार :- आश्रमवासी तथा देश विदेश के सर्वसाधारण के लिए पुस्तक,यज्ञ सामाग्री आदि आवश्यक साधनों के उपलब्ध करना।
- सार्वजनिक भोजनालय (public restaurant):-
- सेवा प्रकल्प :- गृह उद्यग निर्माण के लिए प्रकोष्ठ
- पुस्तक गोदाम(भंडार)
विभाग ‘ट’:-अन्यान्य
- Pबाल केंद्र,Pउध्यान,Pप्रदर्शनी आदि आप का शुभचिंतक
~दर्शन योग परिवार